Friday, September 16, 2011

मेरे यार
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ऐसे मत घूरो मुझे,
गल्ती  मेरी, मारो मुझे,
चुप रहकर यूं इम्तिहान न लो,
कुछ कहते नहीं, पहचान तो लो |

मुस्कुरा कर मुझे आभास तो दो,
खो कर मिलने वाला एहसास तो दो,
मेरे लिए सबसे खास तुम हो
और दिल के पास तुम हो |

मानती हूँ खता कर दी मैंने,
कुछ महीने से आई नहीं मिलने,
क्या करूँ छत पर कोई आने नहीं देता
और घर की खिड़की से तू नहीं दिखता |

खत्म हो जाएगी तकरार,
गर प्यार से देख लो एक बार,
सही नहीं जाती टकटकी की मार,
ओ चाँद! तेरे जैसा नहीं कोई यार || 

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Friday, July 1, 2011

एहसासों कि वर्जिश 

वो कहता है... "तुम्हारी तलाश 
ख़त्म हो गयी
इसलिए तुमने लिखना छोड़ दिया" | 

क्या बताऊ उसको
कि सपनों ने मेरी गली
आना छोड़ दिया |

भाव मेरे दरवाज़े पर
दस्तक नहीं देते,
इसलिए मैंने भी उनकी
गली जाना छोड़ दिया |

क्यूँ न ऐसा कुछ किया जाए,
'एहसासों को थोड़ा सा
धोखा दिया जाए' ... |

मुझे उनकी तलाश में नहीं,
उनको मेरी खोज में लगाया जाए |
पहली बार ही सही,
आज उनसे कुछ काम कराया जाए ||

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Monday, June 6, 2011

पानी की तरह बनना है मुझे,
आज फिर घुलना है मुझे |
 हर चीज़ में समाना है,
और हर चीज़ को अपना बनाना है |

कोई दुश्मन न रहे,
कोई अपना-पराया न रहे |
कोई अंतर न रहे,
और कोई अन्दर न रहे |

बस बहती चलू मैं
निरंतर इक अभ्यास की तरह |   
छुं जाऊ सबको फिर से,
इक प्यास की तरह |

अपना रास्ता स्वयं बनाना है,
हर रंग में मिल जाना है |
सागर से बतियाना है,
अंत में... "आँखों से बह जाना है" ||

Wednesday, April 13, 2011



काले ज़ार रंग से मुझे प्यार हो गया,
कमरे में फैला दो ये मेरा यार हो गया,
परछाइयों से नाता नहीं जबसे उनसे तकरार हो गया |

रौशनी में परछाइयाँ नज़र आती हैं,
जो मुझे न चाहते हुए भी उससे मिलाती हैं,
इसलिए अँधेरे को मैंने रिश्तेदार बना लिया
और परछाइयों से अपना दामन छुड़ा लिया |
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पर देखा... कुछ रिश्ते तो कभी नहीं छूटते,
रौशनी तो क्या, अंधेरों में भी परछाइयों से नाते नहीं टूटते ||

Thursday, February 17, 2011


न जाने क्यों नज़र लग जाती है |
अपनी ही बात कहके वो पछताती है ...
... चार लोगों के सामने 
जब वो अपने प्यार पर इतराती है |

अपने आप से भी दिन-रात छुपाती है |
हर रात उसको खुद से ज़्यादा चाहती है |
मन की खिड़की हमेशा उसे बताती है ...
तू उसे फज़ूल में ही चाहती है |

फूलों की तरह फूली नहीं समाती है |
जब ख्वाब में उससे मिलने जाती है |
टूटे शीशों की तरह भिखर जाती है ...
... जब उसको मिल के आती है |

आँसुओं को सहलाती है
और खुद को अब रोज़ बताती है ...
... अपने प्यार को ज़्यादातर,
अपनी ही नज़र लग जाती है ||