Monday, June 6, 2011

पानी की तरह बनना है मुझे,
आज फिर घुलना है मुझे |
 हर चीज़ में समाना है,
और हर चीज़ को अपना बनाना है |

कोई दुश्मन न रहे,
कोई अपना-पराया न रहे |
कोई अंतर न रहे,
और कोई अन्दर न रहे |

बस बहती चलू मैं
निरंतर इक अभ्यास की तरह |   
छुं जाऊ सबको फिर से,
इक प्यास की तरह |

अपना रास्ता स्वयं बनाना है,
हर रंग में मिल जाना है |
सागर से बतियाना है,
अंत में... "आँखों से बह जाना है" ||

3 comments:

Fani Raj Mani CHANDAN said...

कोई दुश्मन न रहे,
कोई अपना-पराया न रहे |
कोई अंतर न रहे,
और कोई अन्दर न रहे |

बस बहती चलू मैं
निरंतर इक अभ्यास की तरह |
छुं जाऊ सबको फिर से,
इक प्यास की तरह |

अपना रास्ता स्वयं बनाना है,
हर रंग में मिल जाना है |
सागर से बतियाना है,
अंत में... "आँखों से बह जाना है" ||

in teeno parts ko abhi tak kai baar padh chuka... har baar sundar aur sundar lagtaa hai...

merhaba!!!

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

arey dimple ji....
kamaal karte hain aap...
itne dino ke baad aaye aur aate hee ghaayal kar diya....
har rang mein mil jaana hai..
aur ik apna naya rang banaana hai!!

maasha-allah-subhaan-allah...

mini said...

amazing thoughts.....har shabd ka ek alag andaaz hai...paani ki kahaani ki tarah har shaks ka ismein aaftaab hai.....