Wednesday, April 13, 2011



काले ज़ार रंग से मुझे प्यार हो गया,
कमरे में फैला दो ये मेरा यार हो गया,
परछाइयों से नाता नहीं जबसे उनसे तकरार हो गया |

रौशनी में परछाइयाँ नज़र आती हैं,
जो मुझे न चाहते हुए भी उससे मिलाती हैं,
इसलिए अँधेरे को मैंने रिश्तेदार बना लिया
और परछाइयों से अपना दामन छुड़ा लिया |
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पर देखा... कुछ रिश्ते तो कभी नहीं छूटते,
रौशनी तो क्या, अंधेरों में भी परछाइयों से नाते नहीं टूटते ||

2 comments:

Fani Raj Mani CHANDAN said...

कुछ रिश्ते तो कभी नहीं छूटते,
रौशनी तो क्या, अंधेरों में भी परछाइयों से नाते नहीं टूटते

sach hai... kuchh rishte to kabhi nahin chootte...

Jagjit Singh ki Ghazal yaad aa gayee... "Hath chhoote bhi to rishte nahin choota karte"

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

humein bhi aapse aur aapki qalam se pyaar ho gaya!!

khoobsurat rachna hai aapkee!!!