अंदाज़े से
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आधी ज़िन्दगी बीत गयी,
इसका जवाब ढूढने में,
कि ये "अंदाजा" क्या होता है |
रोज़ माँ से पूछती थी, "ये मसाला कितना डाला",
तो वो बोलती थी बस "अंदाज़े से" |
मैं पूछती रहती, "एक चमच या दो",
वो कहती, "बस बेटा अंदाज़े से" |
सोच सोच के मेरा दिमाग परेशान हो जाता,
ये समझ नहीं आता कि
"अंदाज़े से" होता कितना है... |
हमेशा उस दिन से डरती थी,
जिस दिन पहली बार किसी के लिए कुछ बनाउंगी
और वो भी बिना माँ के भाषण के |
लो जी वो दिन भी आ गया...
खाना बनाया और सारे मसाले भी डाले,
कुछ आधा चमच और कुछ पूरा चमच |
देखते ही देखते खाना तैयार हो गया
और फिर माँ से यु ही बात हुयी...
हाल चाल से पहले उनहोंने एक सवाल पुछा,
"खाना कैसा बना?"
मेरा जवाब था, "अच्छा लगा सबको" |
उनका अगला सवाल था, "मसाले कितने डाले"
और हस्ते हुए कहा मैंने ... "अंदाज़े से" ... || :-)